BAKRID KA ROZA – बकरीद में कितने रोज़े रखें

BAKRID KA ROZA
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BAKRID KA ROZA बकरीद में कितने रोज़े रखें – इस्लाम में सबसे अधिक लोकप्रिय रमजान का रोजा है लेकिन रमजान रोजा के अलावा अन्य रोजे भी इस्लाम में रखे जाते है जिनके में बारें हदीस से पता है

रमजान रोजा के अलावा अन्य रोजों की भी बहुत फजीलत है रमजान रोजा के अलावा अन्य रोजा निम्न है – मुहर्रम का रोजा, बकरीद का रोजा, शबे मेराज का रोजा, शबे बारात का रोजा

रमजान का रोजा फर्ज है जबकि बाकी अन्य त्यौहार से पहले जो रोजा रखते है वह सभी नफ्ल रोजा कहलाते है ऐसे में जिल्-हिज्जाह के महीने में (इस्लाम के आखिरी महीना ) बकरीद से पहले नफ्ल रोजा रखते है

जिसकी बहुत ही फजीलत है लेकिन इस रोजा के बारें में बहुत कम लोग को पता होता है बकरीद को ईद उल अजहा के नाम से भी जाना है और ईद उल अजहा के शुरू के 10 दिनों में इबादत करने का सवाब बहुत ज्यादा मिलता है.

HADEES –

नबी ए करीम सल्ल ने इरशाद फरमाया – अल्लाह रब्बुल इज्जत के नजदीक ईद उल अजहा (बकरीद) के दस दिनों से नजदीक कोई दिन नहीं और न किसी दिन में नेक अमल इतना ज्यादा मिलता है जितना इन दिनों में मिलता है

BAKRID KA ROZA
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बकरीद में कितने रोज़े रखें BAKRID KA ROZA

यहाँ पढ़े बकरीद में कितने रोज़े रखें BAKRID KA ROZA ? – बकरीद ( ईद उल अजहा ) के 9 रोजा होते है ईद उल अजहा ( बकरीद ) के शुरू के दिनों से यह रोजा रखा जाता है सबसे आखिरी रोजा अरफा का रोजा होता है

अगर बकरीद यानी ईद उल अजहा का रोजा पूरा 9 दिन रखता है ऐसे में उसके अगले और पिछले 9 साल के गुनाह मांफ कर दिए जाते है जिस दिन ईद उल अजहा (बकरीद) हो उस दिन रोजा नहीं रखना चाहिए

बकरीद रोजा की नियत

रमजान का रोजा हो या कोई भी रोजा, दिल के इरादे से रोजा की नियत हो जाती है लेकिन जुबान से बारिद के रोजा की नियत यूँ करें – ईद उल अजहा (Bakrid) के रोजा की नियत अगर मगरिब नमाज बाद कर रहे है तो यूँ करें –

“नियत की मैंने कल के इस महीने की (ईद उल अजहा) रोजे की अल्लाह तआला के” अगर आप जिस दिन रोजा है उस दिन रोजा की नियत करते है

तो इस तरह जवाल से पहले करे – “नियत की मैंने आज के दिन इस महीने (ईद उल अजहा) के रोजे रखने के, अल्लाह तआला के”

HADEES IN HINDI OF BAKRID

बकरीद का रोजा यानी ईल उल अजहा का रोजा रखना चाहिए या नहीं तो कुछ हदीस बकरीद का रोजा के हवाले पेश कर रहे है –

अल्लाह के ऱसूल ﷺ ने फ़रमाया:- मैं समझता हूँ की अरफा के दिन रोज़ा रखने का सवाब अल्लाह ताला ये देगा की उसके अगले पिछले एक साल के गुनाह बख़्श दिये जाएँगे।” (सुनन इब्ने माजा हदीस ऩ़ः 1730)

अल्लाह के नबी ﷺ से अरफ़ा के दिन के रोज़े के बारे में पूछा गया। आप ﷺ ने फ़रमाया : अरफ़ा के दिन के रोज़े की वजह से में अल्लाह से उम्मीद रखता हूँ कि वो उससे पहले साल-भर के और उसके बाद के साल-भर के गुनाह माफ़ फ़रमा देगा। – इब्ने माज़ा : 1730 सही मुस्लिम : 2447, (INT-1162)

ALLAH के रसूल ﷺ ने फ़रमाया :

कोई दिन नहीं जिस में अल्लाह अरफ़ा के दिन से बढ़ कर बन्दों को आग से आज़ाद फ़रमाता हो, वो (अपने बन्दों के) क़रीब होता है। – सही मुस्लिम : 3288, (INT-1348

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